سورة الكهف
Al-Kahf
Surah Al Kahf in Hindi
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
पहला रुकु
1 – अल हम्दुलिल लाहिल लज़ी अन्ज़ला अला अब दिहिल किताबा वलम यज अल लहू इवाजा।
2 – क़य्यिमल लियुन्ज़िरा बअसन शदीदम मिल लदुन्हु वयु बश शिरल मुअ मिनीनल लज़ीना; यअ मलूनस सालिहाति अन्ना लहुम अजरन हसना।
3 – मा किसीना फीहि अबादा।
4 – व युनज़िरल लज़ीना क़ालुत तखाज़ल लाहू वलादा।
5 – मा लहुम बिही मिन इलमिवं वला लिआबा इहिम कबुरत कलिमतन तखरुजू मिन अफ्वा हिहिम; इय यक़ूलूना इल्ला कज़िबा।
6 – फ़ला अल्लका बाखिउन नफ्सका अला आसारिहिम इल लम युअ’मिनू बिहाज़ल हदीसि असाफा।
7 – इन्ना जअल्ना मा अलल अरदि जीननतल लहा लिनब लुवाहुम अय्युहुम अहसनु अमाला।
8 – व इन्ना लजाइलूना मा अलाईहा सईदन जुरुज़ा।
9 – अम हसिब्ता अन्ना अस्हाबल कह्फि वर रक़ीमि कानू मिन आयातिना अजाबा।
10 – इज़ अवल फित्यतु इलल कह्फि फक़ालू रब्बना आतिना मिल लदुन्का रहमतव व हय्यिअ लना मिन अमरिना रशादा।
11 – फ़दारब्ना अला आजानिहिम फ़िल कह्फि सिनीना अदादा।
दूसरा रुकु
12 – सुम्मा बअस्नाहुम लिनअ’लमा अय्युल हिज्बैनी अहसा लिमा लबिसू अमादा।
13 – नहनु नकुस्सु अलैका नबा अहुम बिल हक्क़, इन्नहुम फित्यतुन आमनू बिरब्बिहिम व ज़िदनाहुम हुदा।
14 – वरा बतना अला क़ुलूबिहिम इज़ क़ामु फ़क़ालू रब्बुना रब्बुस समावाति वल अर्द; लन नदउवा मिन दूनिही इलाहल लक़द कुल्ना इजन शताता।
15 – हाउलाइ कौमुनत तखाजू मिन दूनिही आलिहह, लौला यअ’तूना अलैहिम बिसुल्तानिम बय्यिन; फ़मन अज्लमु मिम मनिफ तरा अलल लाहि कज़िबा।
16 – व इज़िअ तज़ल तुमूहुम वमा यअ’बुदूना इल्लल लाहा फ़अवू इलल कहफि यन्शुर लकुम; रब्बुकुम मिर रहमतिही व युहययिअ लकुम मिन अमरिकुम मिरफका।
17 – व तरश शमसा इज़ा तलअत तज़ावरू अन कहफ़िहिम जातल यमीनि व इज़ा गरबत; तक़रिज़ुहुम ज़ातश शिमालि व हुम फ़ी फज्वतिम मिन्हु।
ज़ालिका मिन आयातिल लाह, मइं यह्दिल लाहु फहुवल मुह्तद, वमइं युद्लिल फलन तजिदा लहू वलिय यम मुरशिदा।
18 – व तहसबुहुम अय्काज़व वहुम रुकूद, व नुक़ल लिबुहुम जातल यामीनि व ज़ातश शिमालि; व कल्बुहुम बासितुन ज़िरा ऐयहि बिलवसीद।
लवित तलअ’ता अलैहिम लवल लयिता मिन्हुम फिरारव वला मुलिअ’ता मिन्हुम रुअबा।
तीसरा रुकु
19 – व कज़ालिका बअस्नाहुम लियाता सा अलू बइनहुम, क़ाला क़ाइलुम मिन्हुम कम लबिस्तुम; क़ालू लबिस्ना यौमन औ ब’अदा यौम।
कालू रब्बुकुम अ’अलमु बिमा लबिस्तुम, फब असू अहादाकुम बिवारि किकुम हाज़िही इलल मदीनति फ़ल यनजुर अय्युहा; अज्का तआमन फ़ल यअ’तिकुम बिरिज्किम मिन्हु, वल यतालत तफ वला यूश इरन्ना बिकुम अहादा।
20 – इन्नहुम इयं यज्हरू अलैकुम यर जुमूकुम अव युईदूकुम फ़ी मिल्लतिहिम वलन तुफ्लिहू इजन अबदा।
21 – व कज़ालिका अअ’सरना अलैहिम लि यअ’लमू अन्ना वअदल लाहि हक्क़ूव व अन्नस साअता ला रैबा फ़ीहा; इज़ यता नाज़ऊना।
बयनहुम अमरहुम फ़क़ालुबनू अलैहिम बुनियाना, रब्बुहुम अअ’लमु बिहिम; क़ालल लज़ीना गलाबू अला अमरिहिम लनत तखिज़न्ना अलैहिम मस्जिद।
22 – सयक़ूलूना सलासतुर राबिउहुम कल्बुहुम व यक़ूलूना खमसतुन सादिसुहुम कल्बुहुम रज्मम बिल गैब; व यक़ूलूना सब अतुव व सामिनुहुम कल्बुहुम।
क़ुर रब्बी अ’अलमु बि इद्दतिहिम मा य’अलमुहुम इल्ला क़लील; फला तुमारि फ़ीहिम इल्ला मिराअन ज़ाहिरव वला तस्तफ्ति फीहिम मिन्हुम अहादा।
चौथा रुकु
23 – वला तकूलान्ना लिशय इन इन्नी फ़ाइलुन ज़ालिका गदा।
24 – इल्ला अय यशाअल लाहु वज़कुर रब्बका इज़ा नसीता; वकुल असा अय यहदियनी रब्बी लि अक़राबा मिन हाज़ा रशादा।
25 – व लबिसू फ़ी कहफ़िहिम सलासा मिअतिन सिनीना वज़दादू तिसआ।
26 – क़ुलिल लाहू अ’अलमु बिमा लबिसू लहू गैबुस समावति वल अर्द, अबसिर बिही व असमि’अ; मा लहुम मिन दूनिही मिव वलिय यिव वला युशरिकु फ़ी हुक्मिही अहदा।
27 – वत्लु मा ऊहिया इलैका मिन किताबि रब्बिक; ला मुबददिला लि कलिमातिही वलन तजिदा मिन दूनिही मुल्तहदा।
28 – वस बिर नफ्सका मअल लज़ीना यद्ऊना रब्बहुम बिल गदाती वल; अशिय्यि युरीदूना वजहहू वला तअ’दू अयनाका अन्हुम तुरददूना।
ज़ीनतल हयातिद दुनिया वला तुतिअ’ मन अग्फ़लना क़ल्बहू अन ज़िकरिना; वत तबाआ हवाहू वकाना अमुरुहू फुरुता।
29 – वकुलिल हक्क़ु मिर रब्बिकुम, फ़मन शाअ फ़ल्युअ’मिव वमन शाअ फल्यक्फुर; इन्ना अअ’तदना लिज़ ज़ालिमीना नारन अहाता बिहिम सुरादिक़ुहा।
वइय यस्तगीसू युगासू बीमाइन कल्मुहलि यशविल वुजूह, बिअ’सस शराबु व साअत मुर तफ़का।
पाँचवाँ रुकु
30 – इन्नल लज़ीना आमनू व अमिलुस सलिहाति इन्ना ला नुदीउ अजरा मन अहसना अमला।
31 – उलाइका लहुम जन्नातु अदनिन तजरी मिन तह तिहिमुल अन्हारु युहल लौन फ़ीहा मिन; असाविरा मिन ज़हाबिव व यल्बसूना सियाबन खुजरम।
मिन सुन्दुसिव व इस्तब रकिम मुतत किईना फ़ीहा अलल अराइक, नि’अमस सवाबु व हसुनत मुरतफ़का।
32 – वदरिब लहुम मसलर रजुलैनि जअल्ना लि अहदिहिमा जन्न्तैनि मिन अ’अनाबिव; व हफफ नाहुमा बिनख्लिव व जअल्ना बैनहुमा ज़रआ।
33 – किल्तल जन्नतैनि आतत उकुलहा वलम तजलिम मिन्हु शयअव व फ़ज जरना खिलालहुमा नहरा।
34 – वकाना लहू समर, फ़क़ाला लिसाहिबिही वहुवा युहाविरुहू अना अक्सरु मिनका मालव व अ’अज्ज़ु नफ़ारा।
35 – वा दखाला जन्नताहू वहुवा ज़ालिमुल लिनफ्सिह, क़ाला मा अज़ुन्नु अन तबीदा हाज़िही अबदा।
36 – वमा अज़ुन्नुस साअता क़ा इमातव व लइर रुदिततु इला रब्बिही ल अजिदन्ना खैरम मिन्हा मुन्क़लाबा।
37 – क़ाला लहू सहिबुहू वहुवा युहाविरुहू अकाफरता बिल लज़ी खलाक़का; मिन तुराबिन सुम्मा मिन नुत्फतिन सुम्मा सव्वाका रजुला।
38 – लाकिन्ना हुवललाहु रब्बी वला उशरिकु बिरब्बी अहादा।
छठा रुकु
39 – व लौला इज़ दखलता जन्नतका क़ुलता मा शाअल लाहू ला हौला वला कुव्वाता इल्ला बिल्लाह; इन तरनि अना अक़ल्ला मिन्का मालव व वलदा।
40 – फ़असा रब्बी अय युअ’तियानि खैरम मिन जन्नतिका व युरसिला; अलैहा हुस्बानम मिनस समाइ फ़तुस बिहा सईदन ज़लाक़ा।
41 – अव युस्बिहा माउहा गौरन फलन तस ततीआ लहू तलबा।
42 – व उहीता बिसमरिही फ़ अस्बहा युक़ल्लिबू कफ़य यहि अला मा अन्फ़का फ़ीहा वहिया ख़ावियतुन; अला उरूशिहा वया कूलू या लैतनी लम उशरिक बिरब्बी अहादा।
43 – वलम तकुल लहू फ़िअतुय यन्सुरूनहू मिन दूनिल लाहि वमा काना मुन्तसिरा।
44 – हुनालिकल वलायतु लिल लाहिल हक्क़, हुवा खैरुन सवाबव व खैरुन ऊक्बा।
45 – वदरिब लहुम मसलल हयातिद दुनिया कमा इन अन्ज़ल्नाहू मिनस समाइ फ़ख तलाता बिही नबातुल अरदि; फ़अस्बहा हशीमन तजरूहुर रियाह, वकानल लाहू अला कुल्लि शय इम मुक़तदिरा।
46 – अल मालु वल बनूना ज़ीनतुल हयातिद दुनिया; वल बाकियातुस सालिहातु खैरुन इन्द रब्बिका सवाबव व खैरुन अमाला।
47 – व यौमा नुसय्यिरुल जिबाला व तरल अरदा बारिज़तव व हशरनाहुम फलम नुगादिर मिन्हुम अहादा।
सातवाँ रुकु
48 – व उरिदू अला रब्बिका सफ्फा, लक़द जिअ’तुमूना कमा ख़लक़नाकुम अव्वला मर्रह; बल ज़अमतुम अल लन नजअला लकुम मवइदा।
49 – व वुदिअल किताबु फ़तरल मुजरिमीना मुश्फ़िकीना मिम्मा फ़ीहि वया क़ूलूना; या वय लताना मालि हाज़ल किताबि ला युगादिरू सगीरतव।
वला कबीरतन इल्ला अह्साहा, ववा जदू मा अमिलू हाजिरा, वला यज्लिमु रब्बुका अहादा।
50 – व इज़ क़ुल्ना लिल मलाइकतिस जुदू लि आदमा फसाजदु इल्ला इब्लीस, कान मिनल जिन्नि।
फ़ फासका अन अमरि रब्बिह, अफ़ा तत तखिजूनहू व जुर रिय्यतहू अव लियाअ मिन दूनी; वहुम लकुम अदुव, बिअसा लिज़ ज़ालिमीना बदला।
51 – मा अश हततुहुम खल्क़स सामावति वल अर्द वला ख़ल्क़ अन्फुसुहिम; वमा कुन्तु मुत तखिज़ल मुज़िल्लीना अज़ुदा।
52 – व यौमा यकुलु नादू शुराका इयल लज़ीना ज़अमतुम फ़ दऔहुम फलम यस्तजीबू; लहुम व जअल्ना बैनहुम मौबिक़ा।
53 – व राअल मुजरिमूनन नारा फ़ज़न्नू अन्नाहुम मुवाकिऊहा वलम यजिदू अन्हा मसरिफ़ा।
54 – व लक़द सर रफ्ना फ़ी हाज़ल क़ुरआनि लिन नासि मिन कुल्लि मसल; वकानल इंसानु अक्सरा शय इन जदाला।
आठवां रुकु
55 – वमा मनाअन नासा अय युअ’मिनू इज़ जाअहुमुल हुदा व यस्तग्फिरू; रब्बहुम इल्ला अन तअ’तियहुम सुन्नतुल अव्वालीना अव यअ’तियाहुमुल अज़ाबू क़ुबुला।
56 – वमा नुरसिलुल मुरसलीना इल्ला मुबश शिरीना व मुन्ज़िरीन; व युजादिलुल लज़ीना कफारू बिल बातिलि लियुद हिदू बिहिल हक्क़, वत तखाजू आयाती वमा उन्ज़िरू हुज़ुवा।
57 – वमन अजलमु मिम्मन ज़ुक्किरा बि आयाति रब्बिही फ़ अ’अरदा अन्हा व नसिया मा क़ददमत यदाह; इन्ना जअल्ना अला क़ुलूबिहिम अकिन नतन अय यफ्क़हूहू वफ़ी आज़ानिहिम वक़रा, व इन तदउहुम इलल हुदा फ़लै यह्तदू इजन अबादा।
58 – व रब्बुकल गफूरू ज़ुर रहमह, लव युआ खिज़ुहुम बिमा कसाबू ला अज्जला लहुमुल अज़ाब; बल लहुम मौइदुल लइं यजिदू मिन दूनिही मौइला।
59 – व तिल्कल क़ुरा अहलक्नाहुम लम्मा ज़लामू व जअल्ना लिमहलिकिहिम मवइदा।
60 – व इज़ क़ाला मूसा लिफताहू ला अबरहु हत्ता अब्लुगा मज मअल बहरैनि अव अम्दिया हुक़ुबा।
61 – फ़ लम्मा बलगा मजमआ बैनहुमा नसिया हूतहुमा फत तखज़ा सबीलहू फ़िल बहरि सरबा।
62 – फलम्मा जावज़ा क़ाला लिफताहू आतिना गदाअना लक़द लक़ीना मिन सफा रिना हाज़ा नसाबा।
नौवां रुकु
63 – क़ाला अरा अयता इज़ अवैना इलस सखरति फ़इन्नी नसीतुल हूत; वमा अन्सानीहु इल्लश शैतानु अन अज्कुरह, वत तखाज़ा सबीलहू फिल बहरि अजबा।
64 – क़ाला ज़ालिका मा कुन्ना नब्गि फ़र तद दाअला आसा रिहिमा क़सासा।
65 – फ़ वजदा अब्दम मिन इबादिना आतयनाहू रहमतम मिन इन्दिना व अल्लम्नाहू मिल लदुन्ना इल्मा।
66 – क़ाला लहू मूसा हल अत्तबिउका अला अन तुअल्लिमनी मिम्मा उल्लिमता रुश्दा।
67 – क़ाला इन्नका लन तस्ततीआ मइया सबरा।
68 – व कैफ़ा तस्बिरू अला मालम तुहित बिही खुबर।
69 – क़ाला सताजिदुनी इंशा अल्लाहु साबिरव वला अ’असी लका अमरा।
70 – क़ाला फ़ इनित तबाअ’तनी फला तस अलनी अन शयइन हत्ता उह्दिसा लका मिन्हु ज़िकरा।
71 – फन तलाका हत्ता इज़ा रकिबा फिस सफीनती खराकाहा; काला अखरक़तहा लितुग रिक़ा अहलहा लक़द जीअ’ता शैअन इमरा।
72 – क़ाला अलम अक़ुल इन्नका लन तसततीआ मइया सबरा।
73 – क़ाला ला तुआखिज्नी बिमा नसीतु वला तुरहिकक़नी मिन अमरी उसरा।
74 – फन तलाक़ा हत्ता इज़ा लकिया गुलामन फ़क़ातलहू क़ाला अक़ातलता नफ्सन ज़किय; यतम बिगैरि नफ्स लक़द जिअ’ता शैअन नुकरा।
दसवां रुकु
75 – क़ाला अलम अक़ुल लका इन्नका लन तसततीआ मइया सबरा।
76 – क़ाला इन सअल्तुका अन शैइम बअ’दहा फला तुसाहिब्नी क़द बलग्ता मिल लदुन्नी उजरा।
77 – फ़न तलका हत्ता इज़ा अतया अहला क़र यतिनिस ततअमा अहलहा फ़अबव अय युज़य्यिफूहुमा; फ़ वजदा फ़ीहा जिदारय युरीदु अय यन क़ज् फ़अक़ामह, क़ाला लौ शिअ’ता लत तखज्ता अलैहि अजरा।
78 – क़ाला हाज़ा फिराक़ु बैनी व बैनिक, सउनब बिउका बितअ’वीलि मालम तस ततिअ अलैहि सबरा।
79 – अम्मस सफीनतु फ़कानत लि मसाकीना य’अमलूना फ़िल बहरि फ अरत्तु अन अईबहा; वकाना वरा अहुम मलिकुय यअ’खुजु कुल्ला सफीनतिन गस्बा।
80 – व अम्मल गुलामु फ़काना अ बवाहू मु’अमिनैनि फ़ खशीना अय युर हिक़ाहुमा तुग्यानव व कुफरा।
81 – फ़ अरदना अय युब्दिलहुमा रब्बुहुमा खैरम मिन्हु ज़कातव व अक़राबा रूहमा।
82 – व अम्मल जिदारु फ़काना लि गुलामैनि यातीमैनि फ़िल मदीनती व काना तहतहु कंज़ुल लहुमा रहमतम मिर रब्बिक; वमा फ़ अल्तुहू मिन अमरी ज़ालिका त’अवीलु मा लम तस तातिअ अलैहि सबरा।
83 – व यस अलूनका अन ज़िल करनैन, क़ुल सअत्लू अलैकुम मिन्हु ज़िकरा।
ग्यारहवां रुकु
84 – इन्ना मक कन्ना लहू फ़िल अर दि व अतैना हु मिन कुल्लि शयइन सबाबा।
85 – फ़अत बआ सबाबा।
86 – हत्ता इज़ा बलाग़ा मग रिबश शम्सि व जादहा तगरुबू फ़ी अयनिन हमिअतिव व जदा इन्दहा क़ौमा; क़ुल्ना याज़ल क़रनैनि इम्मा अन तुअज्ज़िबा व इम्मा अन तत ताखिज़ा फीहिम हुस्ना।
87 – क़ाला अम्मा मन ज़लामा फ़सौफ़ा नुअज्ज़िबुहू सुम्मा युरद्दु इला रब्बिही फ़ युअज़्ज़िबुहु अज़ाबन नुकरा।
88 – व अम्मा मन आमना व अमिला सालिहन फ़लहू जज़ा अनिल हुस्ना, व सनाकूलु लहू मिन अमरिना युसरा।
89 – सुम्मा अत अत बआ सबाबा।
90 – हत्ता इज़ा बलग़ा मतलिअश शम्सि व जदहा ततलुउ अला कौमिल लम नजअल लहुम मिन दूनिहा सितार।
91 – व कज़ालिका वक़द अहतना बिमा लदैहि खुबरा।
92 – सुम्मा अत बआ सबाबा।
93 – हत्ता इज़ा बलाग़ा बैनस सददैनि वजदा मिन दूनिहिमा क़ौमल ला यकादूना यफ्क़हूना क़ौला।
94 – क़ालू या ज़ल क़रनैनि इन्ना यअजूजा व मअ’जूजा मुफसिदूना फ़िल अर्द; फ़हल नज अलु लका खरजन अला अन तजअला बैनना व बैनहुम सद्दा।
95 – क़ाला मा मक्कन्नी फीहि रब्बी खैरुन फ़ अईनूनी बिक़ुव्वतिन अजअल बैनकुम व बैनहुम रदमा।
96 – आतूनी ज़ुबरल हदीद, हत्ता इज़ा सावा बैनस सदफैनि क़ालन फुखू; हत्ता इज़ा जअलहु नारन क़ाला आतूनी उफरिग अलैहि कित्रा।
बारहवां रुकु
97 – फ़मस ताऊ अय यजहरूहु वमस तताऊ लहू नक्बा।
98 – क़ाला हाज़ा रहमतुम मिर रब्बी फ़इज़ा जाअ वअ’दु रब्बी जअलहु दककाअ; वकाना वअ’दू रब्बी हक्क़ा।
99 – व तरकना ब अदहुम यौमइजिय यमूजु फ़ी बअ’दि व नुफ़िखा फिस सूरि फ़जमअ’नाहुम जमआ।
100 – व अरदना जहन्नमा यौम इज़िल लिल काफ़िरीना अरदा।
101 – अल्लज़ीना कानत अअ’युनुहुम फ़ी गिताइन अन ज़िकरी व कानू ला यसतती ऊना समआ।
102 – अ फ़हसिबल लज़ीना कफरू य यात्तखिजू इबादी मिन दूनी अवलियाअ; इन्ना अअ’तदना जहन्नमा लिल काफ़िरीना नुज़ुला।
103 – क़ुल हल नुनब बिउकुम बिल अख्सरीना अअ’माला।
104 – अल्लज़ीना दल्ला सअ’युहुम फ़िल हयातिद दुनिया वहुम यह्सबूना अन्नहुम युहसिनूना सुनआ।
105 – उलाइकल लज़ीना कफारू बिआयाति रब्बिहिम व लिक़ाइही फ़ हबितत अअ’मालुहुम; वला नुक़ीमु लहुम यौमल कियामति वज्ना।
106 – ज़ालिका जज़ा उहुम जहन्नमु बिमा कफारू वत तखाजू आयाती व रुसुली हुज़ुवा।
107 – इन्नल लज़ीना आमनू व अमिलुस सालिहाति कानत लहुम जन्नातुल फिरदौसि नुज़ुला।
108 – खालिदीना फ़ीहा ला यब्गूना अन्हा हिवला।
109 – क़ुल लौ कानल बहरू मिदादल लि कलिमाति रब्बी लना फि दल बहरू कब्ला; अन तन्फदा कलिमातु रब्बी व लौ जीअ’ना बिमिसलिही मदादा।
110 – क़ुल इन्नमा अना बशारुम मिस्लुकुम यूहा इलैया अन्नमा इलाहुकुम इलाहुव वाहिद, फ़मन काना यरजू; लिकाअ रब्बिही फ़ल यअमल अमालन सालिहव वला युशरिक बि इबादति रब्बिही अहादा।
Surah Kahf Tarjuma Ke Sath
अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है
हर तरह की तारीफ ख़ुदा ही को (सज़ावार) है जिसने अपने बन्दे (मोहम्मद) पर किताब (क़ुरान) नाज़िल की और उसमें किसी तरह की कज़ी (ख़राबी) न रखी (1)
बल्कि हर तरह से सधा ताकि जो सख्त अज़ाब ख़ुदा की बारगाह से काफिरों पर नाज़िल होने वाला है उससे लोगों को डराए
और जिन मोमिनीन ने अच्छे अच्छे काम किए हैं उनको इस बात की खुशख़बरी दे की उनके लिए बहुत अच्छा अज्र (व सवाब) मौजूद है (2)
जिसमें वह हमेशा (बाइत्मेनान) तमाम रहेगें (3)
और जो लोग इसके क़ाएल हैं कि ख़ुदा औलाद रखता है उनको (अज़ाब से) डराओ (4)
न तो उन्हीं को उसकी कुछ खबर है और न उनके बाप दादाओं ही को थी (ये) बड़ी सख्त बात है जो उनके मुँह से निकलती है ये लोग झूठ मूठ के सिवा (कुछ और) बोलते ही नहीं (5)
तो (ऐ रसूल) अगर ये लोग इस बात को न माने तो यायद तुम मारे अफसोस के उनके पीछे अपनी जान दे डालोगे (6)
और जो कुछ रुए ज़मीन पर है हमने उसकी ज़ीनत (रौनक़) क़रार दी ताकि हम लोगों का इम्तिहान लें कि उनमें से कौन सबसे अच्छा चलन का है (7)
और (फिर) हम एक न एक दिन जो कुछ भी इस पर है (सबको मिटा करके) चटियल मैदान बना देगें (8)
(ऐ रसूल) क्या तुम ये ख्याल करते हो कि असहाब कहफ व रक़ीम (खोह) और (तख्ती वाले) हमारी (क़ुदरत की) निशानियों में से एक अजीब (निशानी) थे (9)
कि एक बारगी कुछ जवान ग़ार में आ पहुँचे और दुआ की-ऐ हमारे परवरदिगार हमें अपनी बारगाह से रहमत अता फरमा-और हमारे वास्ते हमारे काम में कामयाबी इनायत कर (10)
तब हमने कई बरस तक ग़ार में उनके कानों पर पर्दे डाल दिए (उन्हें सुला दिया) (11)
फिर हमने उन्हें चौकाया ताकि हम देखें कि दो गिरोहों में से किसी को (ग़ार में) ठहरने की मुद्दत खूब याद है (12)
(ऐ रसूल) अब हम उनका हाल तुमसे बिल्कुल ठीक तहक़ीक़ातन (यक़ीन के साथ) बयान करते हैं वह चन्द जवान थे
कि अपने (सच्चे) परवरदिगार पर ईमान लाए थे और हम ने उनकी सोच समझ और ज्यादा कर दी है (13)
और हमने उनकी दिलों पर (सब्र व इस्तेक़लाल की) गिराह लगा दी (कि जब दक़ियानूस बादशाह ने कुफ्र पर मजबूर किया)
तो उठ खड़े हुए (और बे ताम्मुल (खटके)) कहने लगे हमारा परवरदिगार तो बस सारे आसमान व ज़मीन का मालिक है हम तो उसके सिवा किसी माबूद की हरगिज़ इबादत न करेगें (14)
अगर हम ऐसा करे तो यक़ीनन हमने अक़ल से दूर की बात कही (अफसोस एक) ये हमारी क़ौम के लोग हैं
कि जिन्होनें ख़ुदा को छोड़कर (दूसरे) माबूद बनाए हैं (फिर) ये लोग उनके (माबूद होने) की कोई सरीही (खुली) दलील क्यों नहीं पेश करते
और जो शख़्श ख़ुदा पर झूट बोहतान बाँधे उससे ज्यादा ज़ालिम और कौन होगा (15)
(फिर बाहम कहने लगे कि) जब तुमने उन लोगों से और ख़ुदा के सिवा जिन माबूदों की ये लोग परसतिश करते हैं
उनसे किनारा कशी करली तो चलो (फलॉ) ग़ार में जा बैठो और तुम्हारा परवरदिगार अपनी रहमत तुम पर वसीह कर देगा और तुम्हारा काम में तुम्हारे लिए आसानी के सामान मुहय्या करेगा (16)
(ग़रज़ ये ठान कर ग़ार में जा पहुँचे) कि जब सूरज निकलता है तो देखेगा कि वह उनके ग़ार से दाहिनी तरफ झुक कर निकलता है।
और जब ग़ुरुब (डुबता) होता है तो उनसे बायीं तरफ कतरा जाता है और वह लोग (मजे से) ग़ार के अन्दर एक वसीइ (बड़ी) जगह में (लेटे) हैं
ये ख़ुदा (की कुदरत) की निशानियों में से (एक निशानी) है जिसको हिदायत करे वही हिदायत याफ्ता है और जिस को गुमराह करे तो फिर उसका कोई सरपरस्त रहनुमा हरगिज़ न पाओगे (17)
तू उनको समझेगा कि वह जागते हैं हालॉकि वह (गहरी नींद में) सो रहे हैं और हम कभी दाहिनी तरफ और कभी बायीं तरफ उनकी करवट बदलवा देते हैं और उनका कुत्ताा अपने आगे के दोनो पाँव फैलाए चौखट पर डटा बैठा है।
(उनकी ये हालत है कि) अगर कहीं तू उनको झाक कर देखे तो उलटे पाँव ज़रुर भाग खड़े हो और तेरे दिल में दहशत समा जाए (18)
और (जिस तरह अपनी कुदरत से उनको सुलाया) उसी तरह (अपनी कुदरत से) उनको (जगा) उठाया।
ताकि आपस में कुछ पूछ गछ करें (ग़रज़) उनमें एक बोलने वाला बोल उठा कि (भई आख़िर इस ग़ार में) तुम कितनी मुद्दत ठहरे कहने लगे।
(अरे ठहरे क्या बस) एक दिन से भी कम उसके बाद कहने लगे कि जितनी देर तुम ग़ार में ठहरे उसको तुम्हारे परवरदिगार ही (कुछ तुम से) बेहतर जानता है।
(अच्छा) तो अब अपने में से किसी को अपना ये रुपया देकर शहर की तरफ भेजो तो वह (जाकर) देखभाल ले कि वहाँ कौन सा खाना बहुत अच्छा है।
फिर उसमें से (ज़रुरत भर) खाना तुम्हारे वास्ते ले आए और उसे चाहिए कि वह आहिस्ता चुपके से आ जाए और किसी को तुम्हारी ख़बर न होने दे (19)
इसमें शक़ नहीं कि अगर उन लोगों को तुम्हारी इत्तेलाअ हो गई तो बस फिर तुम को संगसार ही कर देंगें या फिर तुम को अपने दीन की तरफ फेर कर ले जाएँगे और अगर ऐसा हुआ तो फिर तुम कभी कामयाब न होगे (20)
और हमने यूँ उनकी क़ौम के लोगों को उनकी हालत पर इत्तेलाअ (ख़बर) कराई ताकि वह लोग देख लें कि ख़ुदा को वायदा यक़ीनन सच्चा है और ये (भी समझ लें) कि क़यामत (के आने) में कुछ भी शुबहा नहीं अब (इत्तिलाआ होने के बाद) उनके बारे में लोग बाहम झगड़ने लगे तो कुछ लोगों ने कहा कि उनके (ग़ार) पर (बतौर यादगार) कोई इमारत बना दो उनका परवरदिगार तो उनके हाल से खूब वाक़िफ है ही और उनके बारे में जिन (मोमिनीन) की राए ग़ालिब रही उन्होंने कहा कि हम तो उन (के ग़ार) पर एक मस्जिद बनाएँगें (21)
क़रीब है कि लोग (नुसैरे नज़रान) कहेगें कि वह तीन आदमी थे चौथा उनका कुत्ताा (क़तमीर) है और कुछ लोग (आक़िब वग़ैरह) कहते हैं कि वह पाँच आदमी थे छठा उनका कुत्ताा है (ये सब) ग़ैब में अटकल लगाते हैं और कुछ लोग कहते हैं कि सात आदमी हैं और आठवाँ उनका कुत्ताा है (ऐ रसूल) तुम कह दो की उनका सुमार मेरा परवरदिगार ही ख़ब जानता है उन (की गिनती) के थोडे ही लोग जानते हैं तो (ऐ रसूल) तुम (उन लोगों से) असहाब कहफ के बारे में सरसरी गुफ्तगू के सिवा (ज्यादा) न झगड़ों और उनके बारे में उन लोगों से किसी से कुछ पूछ गछ नहीं (22)
और किसी काम की निस्बत न कहा करो कि मै इसको कल करुँगा (23)
मगर इन्शा अल्लाह कह कर और अगर (इन्शा अल्लाह कहना) भूल जाओ तो (जब याद आए) अपने परवरदिगार को याद कर लो (इन्शा अल्लाह कह लो) और कहो कि उम्मीद है कि मेरा परवरदिगार मुझे ऐसी बात की हिदायत फरमाए जो रहनुमाई में उससे भी ज्यादा क़रीब हो (24)
और असहाब कहफ अपने ग़ार में नौ ऊपर तीन सौ बरस रहे (25)
(ऐ रसूल) अगर वह लोग इस पर भी न मानें तो तुम कह दो कि ख़ुदा उनके ठहरने की मुद्दत से बखूबी वाक़िफ है सारे आसमान और ज़मीन का ग़ैब उसी के वास्ते ख़ास है (अल्लाह हो अकबर) वो कैसा देखने वाला क्या ही सुनने वाला है उसके सिवा उन लोगों का कोई सरपरस्त नहीं और वह अपने हुक्म में किसी को अपना दख़ील (शरीक) नहीं बनाता (26)
और (ऐ रसूल) जो किताब तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से वही के ज़रिए से नाज़िल हुईहै उसको पढ़ा करो उसकी बातों को कोई बदल नहीं सकता और तुम उसके सिवा कहीं कोई हरगिज़ पनाह की जगह (भी) न पाओगे (27)
और (ऐ रसूल) जो लोग अपने परवरदिगार को सुबह सवेरे और झटपट वक्त शाम को याद करते हैं और उसकी खुशनूदी के ख्वाहाँ हैं उनके उनके साथ तुम खुद (भी) अपने नफस पर जब्र करो और उनकी तरफ से अपनी नज़र (तवज्जो) न फेरो कि तुम दुनिया में ज़िन्दगी की आराइश चाहने लगो और जिसके दिल को हमने (गोया खुद) अपने ज़िक्र से ग़ाफिल कर दिया है और वह अपनी ख्वाहिशे नफसानी के पीछे पड़ा है और उसका काम सरासर ज्यादती है उसका कहना हरगिज़ न मानना (28)
और (ऐ रसूल) तुम कह दों कि सच्ची बात (कलमए तौहीद) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से (नाज़िल हो चुकी है) बस जो चाहे माने और जो चाहे न माने (मगर) हमने ज़ालिमों के लिए वह आग (दहका के) तैयार कर रखी है जिसकी क़नातें उन्हें घेर लेगी और अगर वह लोग दोहाई करेगें तो उनकी फरियाद रसी खौलते हुए पानी से की जाएगी जो मसलन पिघले हुए ताबें की तरह होगा (और) वह मुँह को भून डालेगा क्या बुरा पानी है और (जहन्नुम भी) क्या बुरी जगह है (29)
इसमें शक़ नहीं कि जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे अच्छे काम करते रहे तो हम हरगिज़ अच्छे काम वालो के अज्र को अकारत नहीं करते (30)
ये वही लोग हैं जिनके (रहने सहने के) लिए सदाबहार (बेहश्त के) बाग़ात हैं उनके (मकानात के) नीचे नहरें जारी होगीं वह उन बाग़ात में दमकते हुए कुन्दन के कंगन से सँवारे जाँएगें और उन्हें बारीक रेशम (क्रेब) और दबीज़ रेश्म (वाफते)के धानी जोड़े पहनाए जाएँगें और तख्तों पर तकिए लगाए (बैठे) होगें क्या ही अच्छा बदला है और (बेहश्त भी आसाइश की) कैसी अच्छी जगह है (31)
और (ऐ रसूल) इन लोगों से उन दो शख़्शों की मिसाल बयान करो कि उनमें से एक को हमने अंगूर के दो बाग़ दे रखे है और हमने चारो ओर खजूर के पेड़ लगा दिये है और उन दोनों बाग़ के दरमियान खेती भी लगाई है (32)
वह दोनों बाग़ खूब फल लाए और फल लाने में कुछ कमी नहीं की और हमने उन दोनों बाग़ों के दरमियान नहर भी जारी कर दी है (33)
और उसे फल मिला तो अपने साथी से जो उससे बातें कर रहा था बोल उठा कि मै तो तुझसे माल में (भी) ज्यादा हूँ और जत्थे में भी बढ़ कर हूँ (34)
और ये बातें करता हुआ अपने बाग़ मे भी जा पहुँचा हालॉकि उसकी आदत ये थी कि (कुफ्र की वजह से) अपने ऊपर आप ज़ुल्म कर रहा था (ग़रज़ वह कह बैठा) कि मुझे तो इसका गुमान नहीं तो कि कभी भी ये बाग़ उजड़ जाए (35)
और मै तो ये भी नहीं ख्याल करता कि क़यामत क़ायम होगी और (बिलग़रज़ हुई भी तो) जब मै अपने परवरदिगार की तरफ लौटाया जाऊँगा तो यक़ीनन इससे कहीं अच्छी जगह पाऊँगा (36)
उसका साथी जो उससे बातें कर रहा था कहने लगा कि क्या तू उस परवरदिगार का मुन्किर है जिसने (पहले) तुझे मिट्टी से पैदा किया फिर नुत्फे से फिर तुझे बिल्कुल ठीक मर्द (आदमी) बना दिया (37)
हम तो (कहते हैं कि) वही ख़ुदा मेरा परवरदिगार है और मै तो अपने परवरदिगार का किसी को शरीक नहीं बनाता (38)
और जब तू अपने बाग़ में आया तो (ये) क्यों न कहा कि ये सब (माशा अल्लाह ख़ुदा ही के चाहने से हुआ है (मेरा कुछ भी नहीं क्योंकि) बग़ैर ख़ुदा की (मदद) के (किसी में) कुछ सकत नहीं अगर माल और औलाद की राह से तू मुझे कम समझता है (39)
तो अनक़ीरब ही मेरा परवरदिगार मुझे वह बाग़ अता फरमाएगा जो तेरे बाग़ से कहीं बेहतर होगा और तेरे बाग़ पर कोई ऐसी आफत आसमान से नाज़िल करे कि (ख़ाक सियाह) होकर चटियल चिकना सफ़ाचट मैदान हो जाए (40)
उसका पानी नीचे उतर (के खुश्क) हो जाए फिर तो उसको किसी तरह तलब न कर सके (41)
(चुनान्चे अज़ाब नाज़िल हुआ) और उसके (बाग़ के) फल (आफत में) घेर लिए गए तो उस माल पर जो बाग़ की तैयारी में सर्फ (ख़र्च) किया था (अफसोस से) हाथ मलने लगा और बाग़ की ये हालत थी कि अपनी टहनियों पर औंधा गिरा हुआ पड़ा था तो कहने लगा काश मै अपने परवरदिगार का किसी को शरीक न बनाता (42)
और ख़ुदा के सिवा उसका कोई जत्था भी न था कि उसकी मदद करता और न वह बदला ले सकता था इसी जगह से (साबित हो गया (43)
कि सरपरस्ती ख़ास ख़ुदा ही के लिए है जो सच्चा है वही बेहतर सवाब (देने) वाला है और अन्जाम के जंगल से भी वही बेहतर है (44)
और (ऐ रसूल) इनसे दुनिया की ज़िन्दगी की मसल भी बयान कर दो कि उसके हालत पानी की सी है जिसे हमने आसमान से बरसाया तो ज़मीन की उगाने की ताक़त उसमें मिल गई और (खूब फली फूली) फिर आख़िर रेज़ा रेज़ा (भूसा) हो गई कि उसको हवाएँ उड़ाए फिरती है और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (45)
(ऐ रसूल) माल और औलाद (इस ज़रा सी) दुनिया की ज़िन्दगी की ज़ीनत हैं और बाक़ी रहने वाली नेकियाँ तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक सवाब में उससे कही ज्यादा अच्छी हैं और तमन्नाएँ व आरजू की राह से (भी) बेहतर हैं (46)
और (उस दिन से डरो) जिस दिन हम पहाड़ों को चलाएँगें और तुम ज़मीन को खुला मैदान (पहाड़ों से) खाली देखोगे और हम इन सभी को इकट्ठा करेगे तो उनमें से एक को न छोड़ेगें (47)
सबके सब तुम्हारे परवरदिगार के सामने कतार पे क़तार पेश किए जाएँगें और (उस वक्त हम याद दिलाएँगे कि जिस तरह हमने तुमको पहली बार पैदा किया था (उसी तरह) तुम लोगों को (आख़िर) हमारे पास आना पड़ा मगर तुम तो ये ख्याल करते थे कि हम तुम्हारे (दोबारा पैदा करने के) लिए कोई वक्त ही न ठहराएँगें (48)
और लोगों के आमाल की किताब (सामने) रखी जाएँगी तो तुम गुनेहगारों को देखोगे कि जो कुछ उसमें (लिखा) है (देख देख कर) सहमे हुए हैं और कहते जाते हैं हाए हमारी यामत ये कैसी किताब है कि न छोटे ही गुनाह को बे क़लमबन्द किए छोड़ती है न बड़े गुनाह को और जो कुछ इन लोगों ने (दुनिया में) किया था वह सब (लिखा हुआ) मौजूद पाएँगें और तेरा परवरदिगार किसी पर (ज़र्रा बराबर) ज़ुल्म न करेगा (49)
और (वह वक्त याद करो) जब हमने फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि आदम को सजदा करो तो इबलीस के सिवा सबने सजदा किया (ये इबलीस) जिन्नात से था तो अपने परवरदिगार के हुक्म से निकल भागा तो (लोगों) क्या मुझे छोड़कर उसको और उसकी औलाद को अपना दोस्त बनाते हो हालॉकि वह तुम्हारा (क़दीमी) दुश्मन हैं ज़ालिमों (ने ख़ुदा के बदले शैतान को अपना दोस्त बनाया ये उन) का क्या बुरा ऐवज़ है (50)
मैने न तो आसमान व ज़मीन के पैदा करने के वक्त उनको (मदद के लिए) बुलाया था और न खुद उनके पैदा करने के वक्त अौर मै (ऐसा गया गुज़रा) न था कि मै गुमराह करने वालों को मददगार बनाता (51)
और (उस दिन से डरो) जिस दिन ख़ुदा फरमाएगा कि अब तुम जिन लोगों को मेरा शरीक़ ख्याल करते थे उनको (मदद के लिए) पुकारो तो वह लोग उनको पुकारेगें मगर वह लोग उनकी कुछ न सुनेगें और हम उन दोनों के बीच में महलक (खतरनाक) आड़ बना देंगे (52)
और गुनेहगार लोग (देखकर समझ जाएँगें कि ये इसमें सोके जाएँगे और उससे गरीज़ (बचने की) की राह न पाएँगें (53)
और हमने तो इस क़ुरान में लोगों (के समझाने) के वास्ते हर तरह की मिसालें फेर बदल कर बयान कर दी है मगर इन्सान तो तमाम मख़लूक़ात से ज्यादा झगड़ालू है (54)
और जब लोगों के पास हिदायत आ चुकी तो (फिर) उनको ईमान लाने और अपने परवरदिगार से मग़फिरत की दुआ माँगने से (उसके सिवा और कौन) अम्र मायने है कि अगलों की सी रीत रस्म उनको भी पेश आई या हमारा अज़ाब उनके सामने से (मौजूद) हो (55)
और हम तो पैग़म्बरों को सिर्फ इसलिए भेजते हैं कि (अच्छों को निजात की) खुशख़बरी सुनाएंऔर (बदों को अज़ाब से) डराएंऔर जो लोग काफिर हैं झूटी झूटी बातों का सहारा पकड़ के झगड़ा करते है ताकि उसकी बदौलत हक़ को (उसकी जगह से उखाड़ फेकें और उन लोगों ने मेरी आयतों को जिस (अज़ाब से) ये लोग डराए गए हॅसी ठ्ठ्ठा (मज़ाक) बना रखा है (56)
और उससे बढ़कर और कौन ज़ालिम होगा जिसको ख़ुदा की आयतें याद दिलाई जाए और वह उनसे रद गिरदानी (मुँह फेर ले) करे और अपने पहले करतूतों को जो उसके हाथों ने किए हैं भूल बैठे (गोया) हमने खुद उनके दिलों पर परदे डाल दिए हैं कि वह (हक़ बात को) न समझ सकें और (गोया) उनके कानों में गिरानी पैदा कर दी है कि (सुन न सकें) और अगर तुम उनको राहे रास्त की तरफ़ बुलाओ भी तो ये हरगिज़ कभी रुबरु होने वाले नहीं हैं (57)
और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है अगर उनकी करतूतों की सज़ा में धर पकड़ करता तो फौरन (दुनिया ही में) उन पर अज़ाब नाज़िल कर देता मगर उनके लिए तो एक मियाद (मुक़र्रर) है जिससे खुदा के सिवा कहीें पनाह की जगह न पाएंगें (58)
और ये बस्तियाँ (जिन्हें तुम अपनी ऑंखों से देखते हो) जब उन लोगों ने सरकशी तो हमने उन्हें हलाक कर मारा और हमने उनकी हलाकत की मियाद मुक़र्रर कर दी थी (59)
(ऐ रसूल) वह वाक़या याद करो जब मूसा खिज़्र की मुलाक़ात को चले तो अपने जवान वसी यूशा से बोले कि जब तक में दोनों दरियाओं के मिलने की जगह न पहुँच जाऊँ (चलने से) बाज़ न आऊँगा (60)
ख्वाह (अगर मुलाक़ात न हो तो) बरसों यूँ ही चलता जाऊँगा फिर जब ये दोनों उन दोनों दरियाओं के मिलने की जगह पहुँचे तो अपनी (भुनी हुई) मछली छोड़ चले तो उसने दरिया में सुरंग बनाकर अपनी राह ली (61)
फिर जब कुछ और आगे बढ़ गए तो मूसा ने अपने जवान (वसी) से कहा (अजी हमारा नाश्ता तो हमें दे दो हमारे (आज के) इस सफर से तो हमको बड़ी थकन हो गई (62)
(यूशा ने) कहा क्या आप ने देखा भी कि जब हम लोग (दरिया के किनारे) उस पत्थर के पास ठहरे तो मै (उसी जगह) मछली छोड़ आया और मुझे आप से उसका ज़िक्र करना शैतान ने भुला दिया और मछली ने अजीब तरह से दरिया में अपनी राह ली (63)
मूसा ने कहा वही तो वह (जगह) है जिसकी हम जुस्तजू (तलाश) में थे फिर दोनों अपने क़दम के निशानों पर देखते देखते उलटे पॉव फिरे (64)
तो (जहाँ मछली थी) दोनों ने हमारे बन्दों में से एक (ख़ास) बन्दा खिज्र को पाया जिसको हमने अपनी बारगाह से रहमत (विलायत) का हिस्सा अता किया था (65)
और हमने उसे इल्म लदुन्नी (अपने ख़ास इल्म) में से कुछ सिखाया था मूसा ने उन (ख़िज्र) से कहा क्या (आपकी इजाज़त है कि) मै इस ग़रज़ से आपके साथ साथ रहूँ (66)
कि जो रहनुमाई का इल्म आपको है (ख़ुदा की तरफ से) सिखाया गया है उसमें से कुछ मुझे भी सिखा दीजिए खिज्र ने कहा (मै सिखा दूँगा मगर) आपसे मेरे साथ सब्र न हो सकेगा (67)
और (सच तो ये है) जो चीज़ आपके इल्मी अहाते से बाहर हो (68)
उस पर आप सब्र क्योंकर कर सकते हैं मूसा ने कहा (आप इत्मिनान रखिए) अगर ख़ुदा ने चाहा तो आप मुझे साबिर आदमी पाएँगें (69)
और मै आपके किसी हुक्म की नाफरमानी न करुँगा खिज्र ने कहा अच्छा तो अगर आप को मेरे साथ रहना है तो जब तक मै खुद आपसे किसी बात का ज़िक्र न छेडँ (70)
आप मुझसे किसी चीज़ के बारे में न पूछियेगा ग़रज़ ये दोनो (मिलकर) चल खड़े हुए यहाँ तक कि (एक दरिया में) जब दोनों कश्ती में सवार हुए तो ख़िज्र ने कश्ती में छेद कर दिया मूसा ने कहा (आप ने तो ग़ज़ब कर दिया) क्या कश्ती में इस ग़रज़ से सुराख़ किया है (71)
कि लोगों को डुबा दीजिए ये तो आप ने बड़ी अजीब बात की है-ख़िज्र ने कहा क्या मैने आप से (पहले ही) न कह दिया था (72)
कि आप मेरे साथ हरगिज़ सब्र न कर सकेगे-मूसा ने कहा अच्छा जो हुआ सो हुआ आप मेरी गिरफत न कीजिए और मुझ पर मेरे इस मामले में इतनी सख्ती न कीजिए (73)
(ख़ैर ये तो हो गया) फिर दोनों के दोनों आगे चले यहाँ तक कि दोनों एक लड़के से मिले तो उस बन्दे ख़ुदा ने उसे जान से मार डाला मूसा ने कहा (ऐ माज़ अल्लाह) क्या आपने एक मासूम शख़्श को मार डाला और वह भी किसी के (ख़ौफ के) बदले में नहीं आपने तो यक़ीनी एक अजीब हरकत की (74)
खिज्र ने कहा कि मैंने आपसे (मुक़र्रर) न कह दिया था कि आप मेरे साथ हरगिज़ नहीं सब्र कर सकेगें (75)
मूसा ने कहा (ख़ैर जो हुआ वह हुआ) अब अगर मैं आप से किसी चीज़ के बारे में पूछगछ करूँगा तो आप मुझे अपने साथ न रखियेगा बेशक आप मेरी तरफ से माज़रत (की हद को) पहुँच गए (76)
ग़रज़ (ये सब हो हुआ कर फिर) दोनों आगे चले यहाँ तक कि जब एक गाँव वालों के पास पहुँचे तो वहाँ के लोगों से कुछ खाने को माँगा तो उन लोगों ने दोनों को मेहमान बनाने से इन्कार कर दिया फिर उन दोनों ने उसी गाँव में एक दीवार को देखा कि गिरा ही चाहती थी तो खिज्र ने उसे सीधा खड़ा कर दिया उस पर मूसा ने कहा अगर आप चाहते तो (इन लोगों से) इसकी मज़दूरी ले सकते थे (77)
(ताकि खाने का सहारा होता) खिज्र ने कहा मेरे और आपके दरमियान छुट्टम छुट्टा अब जिन बातों पर आप से सब्र न हो सका मैं अभी आप को उनकी असल हक़ीकत बताए देता हूँ (78)
(लीजिए सुनिये) वह कश्ती (जिसमें मैंने सुराख़ कर दिया था) तो चन्द ग़रीबों की थी जो दरिया में मेहनत करके गुज़ारा करते थे मैंने चाहा कि उसे ऐबदार बना दूँ (क्योंकि) उनके पीछे-पीछे एक (ज़ालिम) बादशाह (आता) था कि तमाम कश्तियां ज़बरदस्ती बेगार में पकड़ लेता था (79)
और वह जो लड़का जिसको मैंने मार डाला तो उसके माँ बाप दोनों (सच्चे) ईमानदार हैं तो मुझको ये अन्देशा हुआ कि (ऐसा न हो कि बड़ा होकर) उनको भी अपने सरकशी और कुफ़्र में फँसा दे (80)
तो हमने चाहा कि (हम उसको मार डाले और) उनका परवरदिगार इसके बदले में ऐसा फरज़न्द अता फरमाए जो उससे पाक नफ़सी और पाक कराबत में बेहतर हो (81)
और वह जो दीवार थी (जिसे मैंने खड़ा कर दिया) तो वह शहर के दो यतीम लड़कों की थी और उसके नीचे उन्हीं दोनों लड़कों का ख़ज़ाना (गड़ा हुआ था) और उन लड़कों का बाप एक नेक आदमी था तो तुम्हारे परवरदिगार ने चाहा कि दोनों लड़के अपनी जवानी को पहुँचे तो तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी से अपना ख़ज़ाने निकाल ले और मैंने (जो कुछ किया) कुछ अपने एख्तियार से नहीं किया (बल्कि खुदा के हुक्म से) ये हक़ीक़त है उन वाक़यात की जिन पर आपसे सब्र न हो सका (82)
और (ऐ रसूल) तुमसे लोग ज़ुलक़रनैन का हाल (इम्तेहान) पूछा करते हैं तुम उनके जवाब में कह दो कि मैं भी तुम्हें उसका कुछ हाल बता देता हूँ (83)
(ख़ुदा फरमाता है कि) बेशक हमने उनको ज़मीन पर कुदरतें हुकूमत अता की थी और हमने उसे हर चीज़ के साज़ व सामान दे रखे थे (84)
वह एक सामान (सफर के) पीछे पड़ा (85)
यहाँ तक कि जब (चलते-चलते) आफताब के ग़ुरूब होने की जगह पहुँचा तो आफताब उनको ऐसा दिखाई दिया कि (गोया) वह काली कीचड़ के चश्में में डूब रहा है और उसी चश्में के क़रीब एक क़ौम को भी आबाद पाया हमने कहा ऐ जुलकरनैन (तुमको एख्तियार है) ख्वाह इनके कुफ्र की वजह से इनकी सज़ा करो (कि ईमान लाए) या इनके साथ हुस्ने सुलूक का शेवा एख्तियार करो (कि खुद ईमान क़ुबूल करें) (86)
जुलकरनैन ने अर्ज़ की जो शख्स सरकशी करेगा तो हम उसकी फौरन सज़ा कर देगें (आख़िर) फिर वह (क़यामत में) अपने परवरदिगार के सामने लौटाकर लाया ही जाएगा और वह बुरी से बुरी सज़ा देगा (87)
और जो शख्स ईमान कुबूल करेगा और अच्छे काम करेगा तो (वैसा ही) उसके लिए अच्छे से अच्छा बदला है और हम बहुत जल्द उसे अपने कामों में से आसान काम (करने) को कहेंगे (88)
फिर उस ने एक दूसरी राह एख्तियार की (89)
यहाँ तक कि जब चलते-चलते आफताब के तूलूउ होने की जगह पहुँचा तो (आफताब) से ऐसा ही दिखाई दिया (गोया) कुछ लोगों के सर पर उस तरह तुलूउ कर रहा है जिन के लिए हमने आफताब के सामने कोई आड़ नहीं बनाया था (90)
और था भी ऐसा ही और जुलक़रनैन के पास वो कुछ भी था हमको उससे पूरी वाकफ़ियत थी (91)
(ग़रज़) उसने फिर एक और राह एख्तियार की (92)
यहाँ तक कि जब चलते-चलते रोम में एक पहाड़ के (कंगुरों के) दीवारों के बीचो बीच पहुँच गया तो उन दोनों दीवारों के इस तरफ एक क़ौम को (आबाद) पाया तो बात चीत कुछ समझ ही नहीं सकती थी (93)
उन लोगों ने मुतरज्जिम के ज़रिए से अर्ज़ की ऐ ज़ुलकरनैन (इसी घाटी के उधर याजूज माजूज की क़ौम है जो) मुल्क में फ़साद फैलाया करते हैं तो अगर आप की इजाज़त हो तो हम लोग इस ग़र्ज़ से आपसे पास चन्दा जमा करें कि आप हमारे और उनके दरमियान कोई दीवार बना दें (94)
जुलकरनैन ने कहा कि मेरे परवरदिगार ने ख़र्च की जो कुदरत मुझे दे रखी है वह (तुम्हारे चन्दे से) कहीं बेहतर है (माल की ज़रूरत नहीं) तुम फक़त मुझे क़ूवत से मदद दो तो मैं तुम्हारे और उनके दरमियान एक रोक बना दूँ (95)
(अच्छा तो) मुझे (कहीं से) लोहे की सिले ला दो (चुनान्चे वह लोग) लाए और एक बड़ी दीवार बनाई यहाँ तक कि जब दोनो कंगूरो के दरमेयान (दीवार) को बुलन्द करके उनको बराबर कर दिया तो उनको हुक्म दिया कि इसके गिर्द आग लगाकर धौको यहां तक उसको (धौंकते-धौंकते) लाल अंगारा बना दिया (96)
तो कहा कि अब हमको ताँबा दो कि इसको पिघलाकर इस दीवार पर उँडेल दें (ग़रज़) वह ऐसी ऊँची मज़बूत दीवार बनी कि न तो याजूज व माजूज उस पर चढ़ ही सकते थे और न उसमें नक़ब लगा सकते थे (97)
जुलक़रनैन ने (दीवार को देखकर) कहा ये मेरे परवरदिगार की मेहरबानी है मगर जब मेरे परवरदिगार का वायदा (क़यामत) आयेगा तो इसे ढहा कर हमवार कर देगा और मेरे परवरदिगार का वायदा सच्चा है (98)
और हम उस दिन (उन्हें उनकी हालत पर) छोड़ देंगे कि एक दूसरे में (टकरा के दरिया की) लहरों की तरह गुड़मुड़ हो जाएँ और सूर फूँका जाएगा तो हम सब को इकट्ठा करेंगे (99)
और उसी दिन जहन्नुम को उन काफिरों के सामने खुल्लम खुल्ला पेश करेंगे (100)
और उसी (रसूल की दुश्मनी की सच्ची बात) कुछ भी सुन ही न सकते थे (101)
तो क्या जिन लोगों ने कुफ्र एख्तियार किया इस ख्याल में हैं कि हमको छोड़कर हमारे बन्दों को अपना सरपरस्त बना लें (कुछ पूछगछ न होगी) (अच्छा सुनो) हमने काफिरों की मेहमानदारी के लिए जहन्नुम तैयार कर रखी है (102)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि क्या हम उन लोगों का पता बता दें जो लोग आमाल की हैसियत से बहुत घाटे में हैं (103)
(ये) वह लोग (हैं) जिन की दुनियावी ज़िन्दगी की राई (कोशिश सब) अकारत हो गई और वह उस ख़ाम ख्याल में हैं कि वह यक़ीनन अच्छे-अच्छे काम कर रहे हैं (104)
यही वह लोग हैं जिन्होंने अपने परवरदिगार की आयातों से और (क़यामत के दिन) उसके सामने हाज़िर होने से इन्कार किया तो उनका सब किया कराया अकारत हुआ तो हम उसके लिए क़यामत के दिन मीजान हिसाब भी क़ायम न करेंगे (105)
(और सीधे जहन्नुम में झोंक देगें) ये जहन्नुम उनकी करतूतों का बदला है कि उन्होंने कुफ्र एख्तियार किया और मेरी आयतों और मेरे रसूलों को हँसी ठठ्ठा बना लिया (106)
बेशक जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे-अच्छे काम किये उनकी मेहमानदारी के लिए फिरदौस (बरी) के बाग़ात होंगे जिनमें वह हमेशा रहेंगे (107)
और वहाँ से हिलने की भी ख्वाहिश न करेंगे (108)
(ऐ रसूल उन लोगों से) कहो कि अगर मेरे परवरदिगार की बातों के (लिखने के) वास्ते समन्दर (का पानी) भी सियाही बन जाए तो क़ब्ल उसके कि मेरे परवरदिगार की बातें ख़त्म हों समन्दर ही ख़त्म हो जाएगा अगरचे हम वैसा ही एक समन्दर उस की मदद को लाँए (109)
(ऐ रसूल) कह दो कि मैं भी तुम्हारा ही ऐसा एक आदमी हूँ (फर्क़ इतना है) कि मेरे पास ये वही आई है कि तुम्हारे माबूद यकता माबूद हैं तो वो शख्स आरज़ूमन्द होकर अपने परवरदिगार के सामने हाज़िर होगा तो उसे अच्छे काम करने चाहिए और अपने परवरदिगार की इबादत में किसी को शरीक न करें (110)
Surah Kahf Benefits in Hindi
सूरह अल-कहफ़ को मुसलमानों द्वारा अत्यधिक माना जाता है और माना जाता है कि इसके कई लाभ हैं। इस सूरह को पढ़ने या उस पर चिंतन करने से जुड़े कुछ लाभ इस प्रकार हैं:
1. एंटीक्रिस्ट (दज्जल) से सुरक्षा: यह माना जाता है कि जो कोई भी सूरह अल-कहफ के पहले दस छंदों को पढ़ता है, वह एंटीक्रिस्ट के परीक्षणों और कष्टों से सुरक्षित रहेगा।
2. ज्ञान और समझ में वृद्धि: सूरा अल-कहफ़ में गहन पाठ, नैतिक शिक्षाएँ और मार्गदर्शन प्रदान करने वाली कथाएँ हैं। इसके श्लोकों का पाठ और मनन करने से महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अवधारणाओं के ज्ञान और समझ में वृद्धि हो सकती है।
3. शुक्रवार को आशीर्वाद: मुसलमानों को शुक्रवार को सूरह अल-कहफ पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
4. आध्यात्मिक सुरक्षा: सूरह अल-कहफ़ का पाठ करना बुराई और नुकसान से आध्यात्मिक सुरक्षा प्रदान करने वाला माना जाता है। इसे शैतान के प्रभाव के खिलाफ ढाल माना जाता है।
5. सांत्वना और शांति: सूरह अल-कहफ में परीक्षण, विश्वास और धैर्य की कहानियां हैं। इन आख्यानों पर चिंतन करना कठिनाई और कठिनाई के समय में सांत्वना और शांति प्रदान कर सकता है।
6. विश्वास और मार्गदर्शन में वृद्धि: सूरह अल-कहफ में विश्वास, ईमानदारी और अल्लाह पर निर्भरता के महत्व पर सबक शामिल हैं। इसके श्लोकों का पाठ और मनन करने से विश्वास दृढ़ होता है और जीवन में मार्गदर्शन मिलता है।
7. पापों की क्षमा: ऐसा माना जाता है कि सूरह अल-कहफ़ का पाठ करने से पापों की क्षमा और हृदय की शुद्धि हो सकती है।
8. बरकह (आशीर्वाद) किसी के प्रावधान में: सूरह अल-कहफ को ईमानदारी और दृढ़ विश्वास के साथ पढ़ना आशीर्वाद लाने और प्रावधान बढ़ाने के लिए माना जाता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जबकि ये लाभ आमतौर पर सूरह अल-कहफ के साथ जुड़े हुए हैं, कुरान पढ़ने का सही सार और पुरस्कार व्यक्ति की ईमानदारी, इरादे और भक्ति पर निर्भर करता है। कुरान मार्गदर्शन और दया की एक दिव्य पुस्तक है, और इसके पाठ को श्रद्धा और अल्लाह से निकटता की इच्छा के साथ संपर्क किया जाना चाहिए।